कर्नाटक विधानसभा चुनावं की तारीखों के ऐलान के साथ ही देश के दोनों प्रमुख दलों यानी भाजपा और काॅन्ग्रेस के कान खड़े हो गए हैं. कर्नाटक राजग सरकार के इस कार्यकाल में चुनावों का सामना करने जा रहा दूसरा ऐसा बड़ा राज्य है, जहाँ काॅन्ग्रेस की सरकार है. इसलिए इसे फतह करना इन दोनों के लिए ही प्रतिष्ठा का प्रश्न बना हुआ है.
काॅन्ग्रेस के लिए इसलिए कि नाॅर्थ में पंजाब की तरह, साउथ में यह अकेला ऐसा राज्य है, जिसमें उसकी सरकार है. इसे खोना मतलब, देश के एक कोने में सिमट जाना, जिसकी वजह से वह सिर्फ कागजों में ही एक राष्ट्रीय दल रह जाएगी. और भाजपा के लिए इसे जीतना इसलिए महत्वपूर्ण है कि पूर्व से पश्चिम तक जीतने के बाद अब उत्तर से दक्षिण की ओर बढ़ रहा उसका विजय अभियान, कर्नाटक जीते बिना अधूरा रह जाएगा.
इस त्रिकोण का तीसरा कोण जेडीएस-बीएसपी का गठजोड़ है, जो मिलकर इनके लिए चुनौती साबित हो सकता है. कांग्रेस की सिद्धारमैया सरकार का कार्यकाल 28 मई को पूरा हो रहा है. कर्नाटक की 225 विधानसभा सीटों पर 224 के लिए चुनाव होने हैं, जबकि एक सीट ऐंग्लो-इंडियन कम्युनिटी के नोमिनेटेड मेंबर के लिए है. लिंगायत को गैरहिंदू धर्म का दर्जा देकर काॅन्ग्रेस अपना दांव खेल चुकी है.
बाकी जीत के लिए दोनों ही दल, इस घोषणा से काफी पहले से अपनी पूरी ताकत झोंके हुए हैं और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और काॅन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी सहित इन दोनों के अनेक स्टार कैंपेनर जोर-शोर से अपने काम में लगे हुए हैं.

